रात के 11 बजे थे। ठंडी हवा अस्पताल की खामोश दीवारों से टकराकर अजीब सी सरसराहट पैदा कर रही थी। ये एक पुराना सरकारी अस्पताल था, जो अब बंद होने वाला था। आज अस्पताल की आखिरी रात थी। मरीजों को पहले ही दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया था। स्टाफ भी छुट्टी पर भेज दिया गया था। पूरे अस्पताल में सिर्फ एक व्यक्ति था—डॉ. अंशुमान।
अंशुमान एक युवा डॉक्टर था, जिसने हाल ही में नौकरी शुरू की थी। अस्पताल के सीनियर डॉक्टर ने आदेश दिया था कि आखिरी रात की औपचारिक ड्यूटी वह निभाए। उसे सिर्फ फॉर्मल पेपरवर्क पूरा करना था और सुबह तक अस्पताल को सील कर दिया जाना था।
अंशुमान अपने कमरे में बैठा था, पुराने रजिस्टरों में नोट्स लिखते हुए। कमरे में एक छोटी सी ट्यूबलाइट जल रही थी, जिसकी टिमटिमाती रौशनी से माहौल और डरावना लग रहा था। बाहर से कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज आती थी।
11:30 बजे उसने अस्पताल के जनरल वार्ड का निरीक्षण करने की सोची। लंबी खाली गैलरी में चलते हुए उसके कदमों की आवाज दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। वह वार्ड में पहुँचा—सभी बेड खाली थे, पर उनमें से एक पर चादर कुछ हल्की सी हिली हुई लगी।
हवा होगी…” अंशुमान ने खुद को समझाया।
जैसे ही वह पलटा, पीछे से धीमी सी आवाज आई, “डॉक्टर साहब…”
अंशुमान ठिठक गया। आवाज बिल्कुल पास से आई थी, लेकिन वहां कोई नहीं था। उसने पूरा वार्ड ध्यान से देखा—सब कुछ सामान्य था। लेकिन फिर वही आवाज दोबारा आई, अबकी बार थोड़ी तेज़—”डॉक्टर साहब, मेरी दवाई…”
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने पूछा, “क…कौन है? यहां कोई नहीं होना चाहिए।
कोई जवाब नहीं मिला।
वह तेज़ कदमों से अपने कमरे की ओर लौटा और दरवाज़ा बंद कर लिया। लेकिन जब वह अपनी टेबल पर बैठा, तो देखा कि मेज पर एक पुरानी मरीज की फाइल रखी थी। फाइल पर नाम लिखा था—‘सरला देवी – मृत: 23 मार्च 1998’।
उसकी सांसें अटक गईं। ये फाइल उसने कभी नहीं देखी थी। उसने फाइल खोली—अंदर कुछ मेडिकल रिपोर्ट्स थीं, एक ब्लड रिपोर्ट, और एक नोट—
हेलो?
दूसरी तरफ से एक बुढ़िया की आवाज आई—”डॉक्टर साहब, मेरी दवाई रह गई थी उस रात… आप फिर क्यों नहीं आए?”
फोन खुद-ब-खुद कट गया।
अब अंशुमान को पूरा यकीन हो गया था कि कुछ तो गलत है। उसने सोचा कि CCTV कैमरे चेक करे। वह मॉनिटर रूम में गया और रिकॉर्डिंग देखनी शुरू की। रात 10:45 की फुटेज में कुछ नहीं था, लेकिन जैसे ही घड़ी 11:15 पर पहुंची, एक अजीब बात दिखी—एक औरत सफेद साड़ी में वार्ड में दाखिल हुई, और फिर… गायब।
ये कैसे हो सकता है? वह बुदबुदाया।
अचानक, मॉनिटर पर कुछ हिलने लगा। स्क्रीन पर स्टैटिक आई और फिर एक चेहरा उभरा—कांपता हुआ, झुलसा हुआ, और आँखों से खून बहता हुआ। स्क्रीन पर लिखा आया—
“तुम भी छोड़ दोगे, डॉक्टर?”
वह चीखते हुए पीछे हट गया और दौड़ते हुए बाहर निकलने लगा। गैलरी में अंधेरा हो चुका था। जनरेटर बंद था, बिजली चली गई थी। वह टॉर्च निकालने ही वाला था कि उसे अपने पीछे किसी के चलने की आहट आई।
टप… टप… टप…
वह रुका, सांस रोके सुनता रहा। फिर पीछे मुड़कर देखा—कोई नहीं था। उसने राहत की सांस ली और मुड़कर आगे बढ़ा ही था कि अचानक किसी ने उसका कंधा जोर से पकड़ा।
“कक…कौन है?” उसने कांपती आवाज़ में पूछा।
कोई जवाब नहीं।
उसने मुड़कर देखा—कोई नहीं।
अब वह बुरी तरह डर चुका था। वह वापस अपने कमरे की ओर भागा, लेकिन दरवाज़ा अपने आप बंद हो चुका था। और फिर… अंदर से किसी के हँसने की आवाज आई।
“अब तुम भी यहीं रहो, डॉक्टर साहब…”
हँसी औरत की थी, लेकिन आवाज में इतनी दहशत थी कि अंशुमान की रूह कांप गई। उसने दरवाजा जोर से धक्का दिया, लेकिन वह खुला नहीं।
अचानक, लाइट्स फिर से जल गईं।
कमरा खुला पड़ा था। वह अंदर गया—सबकुछ सामान्य था।
“क्या ये मेरा वहम था?” उसने खुद से पूछा।
लेकिन फिर, कमरे की दीवार पर कुछ लिखा था—खून से—
“अब ये अस्पताल बंद नहीं होगा, जब तक तुम हमारे साथ न जुड़ो…”
उसने देखा कि उसकी टेबल पर वही फाइल फिर से रखी थी—सरला देवी की।
लेकिन अब उसके नीचे एक नई फाइल थी—
“डॉ. अंशुमान – मृत: आज की रात”
उसी समय, खिड़की से एक ठंडी हवा का झोंका अंदर आया और सारे पन्ने उड़ने लगे। कमरे की बत्ती फिर से बुझ गई।
अंशुमान की चीख गूंज उठी… और फिर सन्नाटा।
सुबह जब अधिकारी अस्पताल को सील करने आए, तो उन्होंने देखा कि कमरा अंदर से बंद था। दरवाज़ा तोड़ा गया, पर अंदर कोई नहीं था। डॉक्टर अंशुमान गायब था।
मगर उसकी चप्पलें और पहचान पत्र मेज़ पर रखे थे।
और दीवार पर अब एक नई लाइन लिखी थी—
“एक और आत्मा जुड़ गई। अस्पताल अब जिंदा रहेगा…”
अस्पताल को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। लेकिन उस रात के बाद जो भी इमारत के पास से गुजरता, उसे किसी के रोने और “डॉक्टर साहब…” कहने की आवाज ज़रूर सुनाई देती।
भूतिया अस्पताल की आखिरी रात… सच में आखिरी नहीं थी।